क्या मोदी मैजिक और राम मंदिर के बिना अबकी बार 400 पार संभव है?
एक काल्पनिक दुनिया में आपका स्वागत है, जहां नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में नहीं हैं, और राम मंदिर केवल कल्पना की दुनिया में एक नक्शा बन कर रह जाता है।
नेतागीरी


क्या मोदी मैजिक और राम मंदिर के बिना "अबकी बार 400 पार" संभव है?
बटुक संवाददाता, झुमरीतलैया:
क्या आप तैयार हैं एक ऐसी दुनिया की कल्पना करने के लिए जहां हमारे प्यारे मोदी जी गायब हैं और राम मंदिर सिर्फ एक दूरस्थ सपना है? यह एक ऐसा भारत होगा जहां NDA 400 सीटों का लक्ष्य हासिल करना एक कोरी कल्पना ही होगी। हां दोस्तों, आपने सही सुना। हमारे एक अनूठे एवं अद्भुत सर्वेक्षण में पाया गया है कि बिना मोदी मैजिक और राम मंदिर के बिना, NDA को 400 सीटें पाना उतना ही मुश्किल होगा जितना राहुल का प्रधानमंत्री बनना।
बटुक समाचार के वैज्ञानिक सोच रखने वाले बटुकों ने ‘3 बॉडी प्रॉब्लम’ के सान-टी से मिल उनकी तकनीकी सहायता ले कर एक ऐसा सुपर कंप्यूटर बनाया, जिस में हमने राहुल के सपनों के उस काल्पनिक भारत की रचना की, जहां पर श्रीमान नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री नहीं हैं, और राम मंदिर संभावनाओं की अलौकिक दुनिया में सिर्फ़ एक खाका बना हुआ है। भाजपाइयों की आकांक्षाओं, कांग्रेसियों की राजनीतिक उलझनों और उद्धव जैसे नेताओं की जो हो सकता था उसके निर्विवाद आकर्षण की इस महान गाथा में आपका स्वागत है।
इस सिम्युलेटर के परिदृश्य में भारत है, एक ऐसा देश जहां राजनीति चाय के समय की चर्चाओं के साथ चाय में मिली हुई चीनी की तरह घुल जाती है और देश की हर एक बहसों की अदरक वाली आत्मा बन जाती है। जरा सोचिए, मोदी की कप्तानी के बिना, NDA का जहाज तूफ़ानी समुंदर में तैर रहा है, जिसका नेतृत्व ऐसे नेताओं का गठबंधन कर रहा है, जो शायद निपुण होते हुए भी समझ नहीं पा रहे है की उसे किस तरफ़ जाना है। वो एक ऐसी बारात होगी जिस में से दूल्हा ही ग़ायब है! आप इमेजिन करे की आपने मुकेश भाई की तरह जामनगर के वनतारा में एक भव्य भारतीय शादी की पार्टी रखी लेकिन अनंत को मुंबई से साथ लाना भूल गये! बस ऐसा ही कुछ!
इधर, राहुल के मन में लड्डू फूटा!
पूरे झुमरीतालैया में विश्व की सबसे प्रतिष्ठित रिसर्च संस्था “इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल पंडित्री एंड पब्लिक पर्सुएशन (आईपीपीपीपी)” ने यह सर्वे किया था। जिसमें आईपीपीपीपी ने यह समझने के लिए मतदाताओं के मानस में गहराई से उतरने का फैसला किया कि मोदी जी की अनुपस्थिति और अनिर्मित राम मंदिर NDA के चुनावी भाग्य को कैसे प्रभावित करते हैं। इस सर्वे से बहुत ही चौंकाने वाली जानकारियां सामने आईं, इस सर्वे में त्रुटि की संभावना इतनी कम है कि दुनिया भर के जानेमाने प्रदीप गुप्ताओ एवं यशवंत देशुमुखों को हम बटुकों से अमर्याद ईर्ष्या हो रही है।
इस डेटा के साथ, आईपीपीपीपी ने एक सुपर सिमुलेशन लॉन्च किया, जिसे "द मोदी फैक्टर" नाम दिया गया, जिसने करोड़ों संख्याओं का विश्लेषण किया, अरबों रुझानों का विश्लेषण किया और यहां तक कि लाखों चाय की पत्तियों को भी पढ़ा। निष्कर्ष? मोदी जी और राम मंदिर के बिना, NDA का 400 का आंकड़ा सिर्फ एक दिवास्वप्न है। भाजपा और बाक़ी NDA के साथी पासिंग मार्कस के आस-पास ही नज़र आये। जी हाँ, सिर्फ़ डबल डिजिट में।
इधर, राहुल के मन में दूसरा लड्डू फूटा!
लेकिन मज़ाक अपनी जगह, बटुकों का यह अध्ययन हमें एक गंभीर सबक सिखाता है - नेतृत्व और प्रतीक का महत्व। मोदी जी जैसे करिश्माई नेता और राम मंदिर जैसे भावनात्मक प्रतीक न सिर्फ वोटों को प्रभावित करते हैं बल्कि लोगों के दिलों में उम्मीदों को भी जन्म देते हैं। बिना इनके, राजनीतिक पार्टियों को वैसा ही महसूस होता है जैसा बच्चों को होता है जब उन्हें पता चलता है कि सफ़ेद दाढ़ी वाला और मोटी तोंद वाला सांता क्लॉज़ असली नहीं है।
तो मेरे प्यारे बटुकों, अगली बार जब आप वोट डालने जाएं, याद रखिएगा कि आपका एक वोट न सिर्फ सरकार का भविष्य तय करता है बल्कि उन नेताओं और विचारों को भी आकार देता है जो हमारी कल्पना को प्रज्वलित करते हैं। और जब आपको लगे कि राजनीति बहुत गंभीर हो रही है, तो याद रखिए की किसी सयाने बटुक ने कहा था - "राजनीति में हंसी-मजाक न हो तो सियासत फीकी-फीकी सी लगती है!"
और ये हमेशा याद रखें, लोकतंत्र की इस महान गाथा में, प्रत्येक बटुक मतदाता के पास वह कलम है जो अगला अध्याय लिखती है। चाहे वह अध्याय किसी की 400 तक विजयी मार्च का वर्णन करता हो या किसी और की अधूरी आकांक्षाओं की कहानी, सत्ता सिर्फ़ मतदाताओं के हाथों में है। हमें बस आपको यह याद दिलाना है कि लोकतंत्र के इस नाटक में, दर्शक भी एक स्टार हैं - एक दिन का ही सही!